मंगलवार, 24 मार्च 2009

बस्तर का तीरथगढ़


बस्तर का चित्रकूट



सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

कुम्भ की मेजबानी में भी छत्तीसगढ़ नंबर वन


छत्तीसगढ़ का नाम आज राजिम कुम्भ की मेजबानी में नंबर वन पर आ गया है। छत्तीसगढ़ देश का ऐसा एक मात्र राज्य है जहां पर हर साल कुम्भ का आयोजन होता है। अब यह बात अलग है कि राजिम कुम्भ को कुम्भ कहने से कुछ लोगों को आपत्ति होती है, लेकिन देश के महान साधु-संतों ने जरूर इसको देश के पांचवें कुम्भ का नाम दे दिया है। वैसे राजिम को कुम्भ कहने से किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। अगर देश में एक और कुम्भ प्रारंभ हुआ है और वह भी एक ऐसा कुम्भ जहां पर हर साल देश भर के साधु-संतों का जमावड़ा लगता है तो इसमें बुरा क्या है। वैसे राजिम को कुम्भ का दर्जा दिलाने में सबसे बड़ा हाथ प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी की सरकार और उसके मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ पयर्टन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का है। आज देश का ऐसा कोई साधु-संत नहीं होगा जो इन दोनों को नहीं जानता होगा।
राजिम की नगरी पुराने जमाने से साधु-संतों की नगर रही है। यहां पर लोमष ऋषि का आश्रम है। इसी आश्रम में आकर देश के नागा साधुओं को जो सकुन और चैन मिलता है, वैसा उनको कहीं नहीं मिलता है। सारे साधु-संत एक स्वर में इस बात को स्वीकार करते हैं कि छत्तीसगढ़ सरकार ने जैसा काम राजिम कुम्भ के लिए किया है वैसा देश में किसी और राज्य की सरकार ने नहीं किया है। ऐसे में क्यों न सरकार की तारीफ हो। कुम्भ के बारे में ऐसा कहा जाता है कि जहां पर साधु-संतों का आगमन होता है और धर्म की अमृत वाणी बरसती है, वहीं कुम्भ होता है। ऐसा सब कुछ तो राजिम में होता है, फिर इसको क्यों न कुम्भ कहा जाए। राजिम में जितने भी दिग्गज साधु-संत आए हैं सबने इसको कुम्भ का ही नाम दिया है। इस बार जब राजिम में 9 से 23 फरवरी तक कुम्भ का आयोजन हुआ तो यह आयोजन पहले आयोजनों से बेहतर रहा। सभी साधु-संतों ने इस बात को स्वीकार किया कि भाजपा सरकार इस राजिम कुम्भ का स्वरूप लगातार निखारते जा रही है। जितने भी साधु-संतों के साथ प्रदेश के रहवाली राजिम कुम्भ में आते हैं सभी खुले मन से इसकी तारीफ करते हैं। वैसे यह बात तय है कि छत्तीसगढ़ हमेशा ही हर आयोजन में मेजबान नंबर वन रहा है। अगर हम खेलों की बात करें तो प्रदेश का नाम मेजबानी में नंबर वन पर है। ऐसे में जबकि राजिम कुम्भ की कमान भी उन बृजमोहन अग्रवाल के हाथ में रहती हैं जिनके हाथों में काफी समय तक प्रदेश के खेल मंत्रालय की भी कमान रही है तो इसमें कोई संदेह नहीं कि उनका आयोजन नंबर वन ही रहेगा। यह श्री अग्रवाल के ही बस की बात रही है जो उन्होंने राजिम कुम्भ को आज देश के साथ विदेश में भी एक अलग पहचान देने में सफलता प्राप्त की है। राजिम कुम्भ में आने वाले साधु-संतों को किसी बात की कमी होने नहीं दी जाती है। लगातार उनके लिए रहने के साथ खाने-पीने के साधनों को सुव्यवस्थित करने का काम किया जा रहा है। आज जिस स्थान पर कुम्भ का आयोजन होता है, वहां पर किसी बात की कमी किसी को नहीं रहती है। सबका ऐसा मानना है कि ऐसी व्यवस्था करना तो बस सरकार के बस में ही है। वैसे राजिम लोचन मेले का महत्व शदियों से है, लेकिन इधर पिछले पांच सालों में इसका जो रूप सामने आया है उसकी कल्पना तो किसी ने नहीं की थी कि राजिम का मेला ऐसा भी हो सकता है। मेले में आने-वाले आस-पास के लोग इस बात से हैरान रहते हैं कि यह मेला इतने बड़े रूप में आ गया है। पहले पहल जब मेला लगता था तो आस-पास के गांव के ही लोग आते थे, लेकिन आज राजिम को जब से कुम्भ का रूप दिया गया है शहर के लोग भी राजिम की तरफ खींचे चले जाते हैं। इसका कारण यह है कि जिन साधु-संतों के दर्शन करने के लिए लोगों को देश के बड़े तीर्थ स्थलों में जाना पड़ता है, वे सभी साधु-संत राजिम कुम्भ में आते हैं। ऐसे में भला कोई इनसे आर्शीवाद पाने का मोह त्याग सकता है। राजिम में सुविधाएं देने के म·सद से इस बार लोमष ऋषि के आश्रम के पास एक विश्राम गृह भी बना दिया गया है। कुम्भ के दौरान जहां संत समागम को देखने के लिए जन सैलाब उमड़ता है, वहीं यहां पर राजनीति से परे धर्म का अनूठा संगम भी देखने को मिलता है। संत समागम के साथ छत्तीसगढ़ की संस्कृति से भी दो-चार होने का मौका मिलता है। छत्तीसगढ़ की संस्कृति आज राजिम कुम्भ की बदौलत जन-जन तक जा रही है। जब यहां पर शाही स्नान के लिए सवारी निकलती है तो वास्तव में लगता है कि यह कुम्भ ही है। ऐसा नजारा देखने का मौका कुम्भ में 12 साल में एक बार आता है, लेकिन छत्तीसगढ़ के राजिम कुम्भ में यह नजारा हर साल देखने को मिलता है। बस यहां पर एक ही बात की कमी खलती है कि पानी कम रहता है। सबका ऐसा मानना है कि नदी में पानी की व्यवस्था और कर दी जाए तो राजिम कुम्भ में चार चांद लग सकते हैं।

शनिवार, 21 फ़रवरी 2009

एक दर्जन खेलों में खेलीं 2312 खिलाड़ी

प्रदेश में खेल विभाग द्वारा करवाए जाने वाले आयोजनों में रायपुर जिले पहले नंबर पर चल रहा है। जहां एक तरफ ग्रामीण खेलों में चार हजार से ज्यादा खिलाड़ी खेले हैं, वहीं महिला खेलों में 2312 खिलाड़ियों ने शिरकत करते हुए रिकॉर्ड बनाया है। महिलाओं के लिए एक दर्जन खेलों का आयोजन किया गया जिसमें 15 विकासखंडों की खिलाड़ी खेलीं। राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले महिला खेलों के लिए प्रदेश की टीमें बनाने से पहले जिला स्तर पर खेल एवं युवा कल्याण विभाग द्वारा आयोजन किए जाते हैं। इन आयोजनों में प्रदेश के 18 जिलों में रायपुर जिला पहले नंबर पर चल रहा है। रायपुर जिले से सभी 15 विकासखंडों के खिलाड़ी खेलने आते हैं। महिला खेलों में एक दर्जन खेलों एथलेटिक्स, कबड्डी, वालीबॉल, बास्केटबॉल, हैंडबॉल, हॉकी, टेबल टेनिस, बैडमिंटन, तैराकी, जिम्नास्टिक, खो-खो एवं लॉन टेनिस का आयोजन किया गया। इन आयोजनों में 2312 खिलाड़ियों ने भाग लिया। जिन 15 विकासखंडों ने इन खेलों में भाग लिया उनमें धरसीवां ऐसा विकासखंड रहा है जहां से एक जिम्नास्टिक को छोड़कर बाकी सभी खेलों में महिला खिलाड़ी खेलने आई हैं। धरसीवां विकासखंड से सबसे ज्यादा 466 खिलाड़ी शामिल हुईं हैं। वैसे जिम्नास्टिक की खिलाड़ी किसी भी विकासखंड में नहीं हैं। ज्यादातर विकासखंडों में एथलेटिक्स, कबड्डी, वालीबॉल और खो-खो की ही खिलाड़ी ज्यादा हैं। इन्हीं खेलों में मुकाबला कड़ा होता है। बाकी खेलों में काफी कमी टीमें आती हैं। बहरहाल जिन विकासखंडों से खिलाड़ी खेलने आईं उनमें अभनपुर से 194, आरंग से 142, तिल्दा से 134, बलौदाबाजार से 107, पलारी से 138, कसडोल से 137, बिलाईगढ़ से 139, सिमगा से 99, भाटापारा से 117, राजिम से 115, गरियाबांद से 211, देवभोग से 101, छुरा से 124 और मैनपुर से 88 खिलाड़ी शामिल हैं। राष्ट्रीय स्तर पर भी महिला खेलों में ज्यादा सफलता एक तरफ जहां रायपुर जिला महिला खिलाड़ियों के मामले में पहले नंबर पर है, वहीं राष्ट्रीय स्तर पर सफलता के मामले में भी महिलाएं आगे हैं। खेल विभाग द्वारा जिन टीमों को राष्ट्रीय स्तर पर खेलने के लिए भेजा जाता है उनमें ग्रामीण के साथ महिला टीमें शामिल हैं। इनमें महिला टीमें ही लगातार पदक ला रही है। हाल ही में भुवनेश्वर में हुई राष्ट्रीय चैंपियनशिप में छत्तीसगढ़ की बास्केटबॉल और हैंडबॉल टीमों ने स्वर्ण पदक जीता है। इन खेलों के अलावा वालीबॉल, कबड्डी, खो-खो एथटेक्सि और टेबल टेनिस में भी प्रदेश की टीमें काफी सफल रही हैं।

प्रदेश ओलंपिक संघ की अब तीन प्रशिक्षण शिविर लगाने की योजना

राष्ट्रीय खेलों के लिए प्रदेश ओलंपिक संघ अब तीन प्रशिक्षण शिविर लगाने की योजना पर काम कर रहा है। फरवरी में होने वाले इस आयोजन के स्थगित होने के बाद अब प्रदेश की टीमों को तैयार करने के लिए ज्यादा वक्त मिल गया है।
यह जानकारी देते हुए प्रदेश ओलंपिक संघ के महासचिव बशीर अहमद खान ने बताया कि रांची में 15 फरवरी से होने वाले राष्ट्रीय खेलों के स्थगित होने से पहले ही ओलंपिक संघ को प्रदेश के खेल विभाग से टीमों को तैयार करने के लिए अनुदान मिल चुका है। ऐसे में अब संघ ने पहले यह फैसला किया था पूर्व में निर्धारित 22 जनवरी से प्रारंभ होने वाले प्रशिक्षण शिविर को यथावत रखा जाएगा, लेकिन स्कूली और कॉलेज के खिलाड़ियों की परीक्षाओं को देखते हुए अब संघ ने फैसला किया है कि पहला शिविर मार्च में लगाया जाए ताकि कम से कम स्कूली खिलाड़ियों की परीक्षाएं समाप्त हो जाए। इसके बाद दूसरा शिविर मई और तीसरा शिविर टीमों के जाने के पहले जून में लगाया जाए। उन्होंने बताया कि संघ द्वारा जो तीन शिविर लगाने की योजना पर काम किया जा रहा है उसकी जानकारी भी खेल विभाग को दे दी जाएगी। उन्होंने कहा कि पहली बार ऐसा होगा कि टीमों के लिए तीन शिविर लगाने का मौका मिलेगा। ऐसा होने से खिलाड़ियों को ज्यादा अभ्यास का मौका मिलेगा और प्रदेश की टीमें ज्यादा से ज्यादा पदक लाने में सफल होंगी। उन्होंने बताया कि खेल संचालक जीपी सिंह पहले ही यह कह चुके हैं कि जिन खेलों में एनआईएस कोच की जरूरत होगी, उन खेलों के लिए बाहर से भी कोच बुलाए जाएंगे।

क्रिकेट का ही जलवा

राजधानी के नेताजी स्टेडियम में एक तरफ जहां स्वर्ण कप नेहरू हॉकी की तैयारियां चल रहीं हैं, वहीं दूसरी तरफ मैदान के एक किनारे छोटे-छोटे बच्चो क्रिकेट खेलने में मस्त हैं। यह सिर्फ एक स्टेडियम का हाल नहीं है। आज जहां देखो बस क्रिकेट का ही जलवा नजर आता है। घर के ड्राइंगरूम से लेकर मैदान तक बस क्रिकेट और क्रिकेट के अलावा कुछ नहीं है। क्रिकेट को तो अब भारत में अघोषित तौर पर राष्ट्रीय खेल भी मान लिया गया है। भारत की क्रिकेट टीम इस समय श्रीलंका के दौरे पर है और धोनी की सेना वहां धमाल कर रही है। इधर धोनी की सेना धमाल कर रही है तो इधर अपने छत्तीसगढ़ में भी हर तरफ हर कोई क्रिकेट का जानने वाला या फिर न भी जानने वाला क्रिकेट में कमाल कर रहा है। राजधानी का ऐसा कोई मैदान नहीं है जहां पर रोज सुबह बड़ी संख्या में बच्चो और बड़े बल्ला लिए गेंदों पर चौके-छक्के लगाते नजर नहीं आते हैं। अपने हॉकी के एक मात्र नेताजी स्टेडियम की बात करें तो यहां पर इन दिनों अखिल भारतीय स्वर्ण कर नेहरू हॉकी की तैयारी चल रही है। एक तरफ आयोजक मैदान बनाने में जुटे हैं तो दूसरी तरफ एक किनारे में कई बच्चो टेनिस बॉल से क्रिकेट खेलने में मस्त है। इन बच्चों को इस बात का दुख है कि जब हॉकी मैचों का प्रारंभ होगा तो उनको क्रिकेट खेलने का मौका नहीं मिलेगा। वैसे हॉकी के इस स्टेडियम में हॉकी कम क्रिकेट का खेल ज्यादा होता है। कुछ दिनों पहले ही नगर निगम की टीमें भी यहां पर क्रिकेट खेल रहीं थीं। सड़क पर क्रिकेट आम राजधानी में जब भी किसी कारण से हड़ताल होती है और दुकानों में ताले लगते हैं तो आस-पास रहने वाले बच्चों की चांदी हो जाती है। बच्चों को सड़क पर क्रिकेट खेलने का मौका मिल जाता है। वैसे शहर का कोई भी ऐसा वार्ड और कालोनी नहीं है जहां पर बच्चो सड़कों पर क्रिकेट खेलते नजर नहीं आते हैं। कुछ समय पहले जब पेट्रोल की मारा-मारी हुई थी और कई पेट्रोल पंपों में ताले लग गए थे तो पेट्रोल पंपों के कर्मचारी समय काटने के लिए क्रिकेट खेलते ही नजर आए थे। खेतों-पहाड़ों में भी क्रिकेट क्रिकेट की दीवानगी महज शहरों तक सीमित है ऐसा नहीं है। इसकी दीवानगी शहरों से ज्यादा तो गांवों में नजर आती है। गांवों में कोई बच्चा देशी खेल कबड्डी, वालीबॉल, फुटबॉल, कुश्ती खेलते भले नजर न आए पर क्रिकेट खेलते जरूर नजर आएगा। गांवॊ में मैदान न होने के कारण गांवों में खेतॊं को ही मैदान बना दिया जाता है और बड़े मजे से मस्त होकर बच्चो चौके-छक्के लगाते नजर आते हैं। गांवों के खेतों के बाद पहाड़ों की तरफ रूख करें तो जहां इन पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले बच्चो क्रिकेट खेलते हैं, वहीं पहाड़ी क्षेत्रों के धार्मिक स्थलों डोंगरगढ़, भौरमदेव, खल्लारी, रतनपुर, जतमई या फिर कोई भी धार्मिक स्थल हो यहां जब परिवार वाले पिकनिक मानने जाते हैं साथ में बल्ला और गेंद जरूर ले जाते हैं और पहाड़ी में ही शुरू हो जाते हैं क्रिकेट का मजा लेने। ऐसा ही उद्यानों में भी होता है। कुल मिलाकर ऐसा कोई स्थान नजर नहीं आता है जहां पर क्रिकेट की घुसपैठ न हो। क्रिकेट स्टेडियम भी पहले बना राजधानी रायपुर में एक तरफ जहां स्पोट्र्स कॉम्पलेक्स दो दशक के बाद भी अब तक नहीं बन सका है, वहीं दूसरी तरफ प्रदेश की नई राजधानी में अंतरराष्ट्रीय स्तर का क्रिकेट स्टेडियम बन गया है। न सिर्फ यह स्टेडियम बन गया है, बल्कि यहां पर भारतीय टीम के पूर्व खिलाड़ियॊ का एक मैच भी करवाया गया। जब मैच हुआ तो इस मैच को देखने के लिए जिस तरह से एक लाख से ज्यादा दर्शकों का सैलाब आया उससे भी यह मालूम होता है कि छत्तीसगढ़ में क्रिकेट की कितनी दीवानगी है। मैच में खेलने आए खिलाड़ी एक मैत्री मैच ही इतने ज्यादा दर्शक देखकर आश्चर्य में पड़ गए थे। विकास का रास्ता भी दिखाते है क्रिकेट क्रिकेट के बारे में विशेषज्ञों का ऐसा मानना है कि यह जिस राज्य में ज्यादा खेला जाता है, उसको विकास का रास्ता भी दिखाता है। एक समय भारतीय टीम में मुंबई के खिलाड़ियों का दबदबा तो मुंबई का विकास हुआ। इसके बाद दिल्ली का नंबर आया, फिर बंगाल का और फिर अब उत्तर प्रदेश और झार‌‌खंड का नंबर है। इन राज्यों में विकास की गंगा बह रही है। छत्तीसगढ़ से भले एक राजेश चौहान के बाद कोई खिलाड़ी भारतीय टीम में स्थान नहीं बना सका है, लेकिन यहां पर क्रिकेट की दीवानगी किसी भी राज्य की तुलना में काफी ज्यादा है। और यह दीवानगी भी राज्य को विकास का रास्ता दिखाने का काम कर सकती है।

शनिवार, 7 फ़रवरी 2009

सुविधाएं देने का वादा, अब पदक मिलेंगे ज्यादा

प्रदेश की खेल बिरादरी के सुझावों पर खेल विभाग ने सुविधाएं देने का जो वादा रविवार को संगोष्ठी में किया है, उसके बाद अब यह उम्मीद हो गई है कि राष्ट्रीय चैंपियनशिप में प्रदेश को ज्यादा पदक मिलेंगे। प्रदेश को ज्यादा पदक दिलाने की मंशा को लेकर ही खेल विभाग ने एक संगोष्ठी का आयोजन यहां किया था। प्रदेश को खेलों में नंबर वन बनाने की मंशा के लिए आयोजित की गई संगोष्ठी में कई सुझाव आए इन सुझावों पर खेल मंत्री सुश्री लता उसेंडी के साथ खेल विभाग के सचिव सुब्रत साहू ने अमल करने की बात कही और यह भी बताया कि ज्यादातर सुझावों पर खेल विभाग पहले से काम कर रहा है। सबसे पहले ओलंपिक संघ के सचिव बशीर अहमद खान ने अपनी बात रखते हुए कहा कि खेल संघों को मान्यता देने वाले नियमों में और शिथिलता लाने की जरूरत है। इसी के साथ उन्होंने कहा किस खेल विभाग राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने वालों खिलाड़ियों को तो नगद राशि देकर सम्मानित करता है, पर प्रशिक्षकों को नगद राशि का इनाम नहीं दिया जाता है। उन्होंने प्रशिक्षकों को नगद राशि इनाम देने की वकालत करने के साथ ही खेल पत्रकारों और खेलों को बढ़ावा देने वालों के लिए भी पुरस्कार देने की बात कही।
पदकॊं की बरसात हो खेल संचालक जीपी सिंह ने कहा कि उनका विभाग चाहता है कि प्रदेश को ज्यादा से ज्यादा खेलॊं में पदक मिलें। उन्होंने बताया कि अनुदान नियमों में संशोधन के साथ खेलों को उद्योगों को गोद दिलाने की पहल के साथ प्रशिक्षकों की भर्ती भी की जा रही है। खेल नीति की समीक्षा की भी योजना है। प्रदेश में एक खेल अकादमी भी बनाई जा रही है, इसी के साथ भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) का एक बड़ा सेंटर भी राजनांदगांव में बनाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि राज्य बनने के बाद 10 खेलों में ही 109 पदक मिले हैं।
खेलों की श्रोणियां तय हों
केन्द्र सरकार द्वारा खेलों की जिस तरह से श्रोणियां तय की गई हैं, उसी तरह से प्रदेश में भी श्रोणियां तय करने की बात पूर्व ओलंपियन राजेन्द्र प्रसाद ने कहीं। उन्होंने कहा कि सरकार को ऐसे खेलों का ध्यान देना चाहिए जिनसे पदकों की ज्यादा उम्मीद है। इसके विपरीत ट्रायथलान संघ के विष्णु श्रीवास्तव ने कहा कि प्रदेश सरकार को ऐसे खेलों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है जिन खेलों के संघ काफी कम सुविधाओं के साथ मान्यता के बिना ही अच्छा कर रहे हैं। उन्होंने खेल पर्यटन की बात करते हुए कहा कि आज जमाना एडवेंचर स्पोट्र्स का है। उन्हॊंने पुलिस में भी खेलों की नीति बनाने की बात के साथ पुलिस विभाग में खिलाड़ियों को नौकरी देने की बात कही। नेटबॉल संघ के संजय शर्मा ने भी खिलाड़ियों को नौकरी देने की बात कही। उन्होंने खेलों को बढ़ाने के लिए प्रदेश को तीन जोन में बांटकर खेलों का आयोजन करने की बात की। पूर्व मंत्री और नेटबॉल संघ के अध्यक्ष विधान मिश्रा ने भी खेलों को श्रोणियों में बांटने की बात के साथ राजधानी के इंडोर स्टेडियम को नगर निगम से लेकर खेल विभाग को बनाने का सुझाव दिया। 10वीं कक्षा तक खेल जरूरी हों फुटबॉल संघ के अध्यक्ष रामविनास ने कहा कि प्रदेश में 10वीं कक्षा तक खेलों को अनिवार्य किया जाए और इसको एक विषय के रूप में पाठयक्रम में शामिल करके इसकी परीक्षा ली जाए। पूर्व अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी नीता डुमरे ने स्कूली खिलाड़ियों की फीस माफ करने की बात कही। पुराने मैदानों को ठीक किया जाए क्रिकेट संघ के अध्यक्ष बलदेव सिंह भाटिया ने प्रदेश में खेल मैदानॊं की कमी को दूर करने के लिए सबसे पहले उन मैदानों को ठीक करने की बात कही जो मैदान आज रखरखाव के अभाव में काम के नहीं रह गए हैं। उन्होंने खिलाड़ियॊं के लिए प्रशिक्षक उपलब्ध भी कराने की बात कही। उन्होंने खेल संघों की मानिटरिंग करने के लिए एक समिति बनाने का भी सुझाव दिया। वालीबॉल संघ के मो.अकरम खान ने कहा कि हर जिले में प्रशिक्षक होने चाहिए। उन्होंने खेल विभाग को सीनियर वर्ग की चैंपियनशिप का भी आयोजन अपने हाथ में लेने का सुझाव दिया। उन्होंने राजधानी में एक स्पोट्र्स हास्टल बनाने की बात कही ताकि खेलों के आयोजन में खिलाड़ियों को ठहराने में परेशानी न हो। कराते संघ के विजय अग्रवाल ने राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी लेने की बात कहते हुए कहा कि रायपुर और भिलाई के बीच में मैदान बनाने चाहिए। तीरंदाजी संघ के कैलाश मुरारका ने अनुदान के लिए होने वाली कागजी कार्रवाई को कम करने की बात की तो लॉन टेनिस संघ के गुरचरण सिंह होरा ने अनुदान खेल संघों का अग्रिम देने की वकालत की। सरकार मदद करेगी कार्यक्रम के अंत में खेल मंत्री लता उसेंडी ने जहां कहा कि सभी सुझावों पर ध्यान दिया जाएगा और सरकार खेल संघों को हरसंभव मदद करेगी। इधर खेल सचिव सुब्रत साहू ने सुझावों को सुनने के बात सिलेसिलेवार बताया कि ज्यादातर सुझावों पर पहले से ही अमल हो रहा है। इसी के साथ उन्होंने कहा कि जो भी सुङााव आएं हैं उन पर नियमानुसार अमल किया जाएगा। नहीं मिला सुझाव देने का मौका बैठक में 30 से ज्यादा खेल संघों के अध्यक्ष‍सचिवॊं आए थे, इनमें से चंद लोगों को ही बोलने का मौका दिया गया। जिनको बोलने का मौका नहीं मिला वो मन मारकर रह गए। कई संघों के पदाधिकारी यह भी कहते रहे कि ओलंपिक संघ और खेल विभाग के अधिकारियॊं ने केवल उनको बोलने का मौका दिया जो उनकी मंशा के अनुरूप बोलते। वैसे खेल विभाग ने सभी से लिखित में भी सुझाव मांगे हैं। लेकिन कई लोगों संगोष्ठी में बोलने के इच्छुक थे, पर समय कम होने की बात कहते हुए काफी कम लोगों को बोलने दिया गया।

शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

देश का हर गांव खेलों से जुड़ जाएगा


प्रदेश के 14 ब्लाकों की 982 पंचायतों में केन्द्र सरकार की एक योजना पंचायत युवा क्रीड़ा और खेल अभियान योजना यानी पाइका के माध्यम से खिलाड़ी लइका तैयार करने की दिशा में खेल विभाग ने तैयारी प्रारंभ कर दी है। पहले चरण में सभी जिलों में ऐसी पंचायतॊ को चिंहित करने का काम हो रहा है जहां पर खेल योजनाओं को प्रारंभ किया जाना है। इन योजनाओं के लिए केन्द्र सरकार पैसों की बरसात करने वाली है। केन्द्र सरकार की मदद से सबसे पहले प्रदेश की 10 प्रतिशत पंचायतों को खेलों से जोड़ा जाएगा। इस दस साल की योजना में प्रदेश की सभी पंचायतों में खेलों का विकास होगा और छत्तीसगढ़ ही नहीं देश का हर गांव खेलों से जुड़ जाएगा। प्रदेश की खेल नीति में यूं तो पहले से ही पंचायत स्तर पर खेलों को बढ़ाने की बात है, और इस दिशा में पिछले आठ सालों से कुछ न कुछ काम हो ही रहा है, लेकिन इस साल अचानक केन्द्र सरकार ने जो योजना पूरे देश के लिए प्रारंभ की है, उस योजना से अब प्रदेश में पंचायत स्तर पर खेलों को बढ़ाने की दिशा में काफी तेजी से काम होगा। पहले चरण में केन्द्र की योजना को लागू करने के लिए खेल विभाग ने काम प्रारंभ कर दिया है। योजना को लागू करने के लिए खेल संचालक ने प्रदेश के सभी जिलों के पुलिस अधीक्षकों को एक पत्र जारी करके उनसे अपने जिले के ऐसे ब्लाकॊं और पंचायतों की जानकारी मांग है जिनको खेलों के लिए विकसित किया जाए सके। खेल संचालक जीपी सिंह ने बताया कि पहले चरण में 982 पंचायतों को चिंहित किया जा रहा है। इनको चिंहित करने का काम अंतिम चरण में है। इन पंचायतों और ब्लाकों को इस माह के अंत तक चिंहित कर लिया जाएगा। इसके बाद एक योजना बनाकर केन्द्र सरकार के पास भेजी जाएगी। क्या है पाइका योजना सबसे पहले पाइका के बारे में जानना जरूरी है कि आखिर यह योजना क्या है। इस योजना के बारे में खुलासा करते हुए खेल संचालक जीपी सिंह ने बताया कि केन्द्र सरकार देश भर में हर गांव को खेलों से जोड़ने की तैयारी में है। इसके लिए सरकार ने पंचायत युवा क्रीड़ा और खेल अभियान योजना (पाइका) नाम से एक नई योजना प्रारंभ की है। यह योजना 10 साल की है। पहले साल में देश के हर राज्य की 10 प्रतिशत पंचायतों को इसमें शामिल किया जा रहा है। हर साल इसी के हिसाब से नई पंचायतों को जोड़ा जाएगा। दस साल के अंदर पूरे देश के गांवों को खेलों से जोड़ दिया जाएगा। जिन पंचायतों को पहले साल में योजना में शामिल किया जाएगा वहां के लिए पूरी तरह से योजना बनाकर हर राज्य को केन्द्र को भेजना होगा। इन योजनाओं के लिए केन्द्र सरकार आर्थिक मदद करेगी। इस योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में खेलों को सुलभ बनाने के साथ गांव से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिताओं का आयोजन भी करना है। हर साल 10 प्रतिशत के हिसाब के योजना में पंचायतों को शामिल किया जाएगा और 10 साल होते-होते सभी पंचायतें इस योजना से जुड़ जाएगी और देश के हर गांव में जहां खेल मैदान होंगे, वहीं वहां की प्रतिभाओं को ब्लाक स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर खेलने जाने का मौका मिलने लगेगा। भरपूर आर्थिक मदद मिलेगी पाइका को राज्य में लागू करने के लिए केन्द्र सरकार से भरपूर आर्थिक मदद मिलेगी। सबसे पहले चिंहित गांवों में मैदान के लिए एक-एक लाख की राशि दी जाएगी। इस राशि का 75 प्रतिशत अंश केन्द्र से और 25 प्रतिशत राज्य सरकार से मिलेगा। प्रदेश में उन मैदानों को चिंहित किया जा रहा है, जहां पर पहले से कुछ सुविधाएं हैं। इस बारे में खेल संचालक का कहना है कि एक लाख की राशि में मैदान को पूरी तरह से विकसित करना संभव नहीं है। ऐसे में यह जरूरी है कि उन्हीं मैदानों को शामिल किया जाए जहां पर एक लाख की राशि के अंदर मैदान इस लायक हो सकें कि वहां पर खेल हो सके। खेल मैदानों को बनाने के लिए केन्द्र सरकार की रोजगार गारंटी योजना की भी मदद लेने की बात की जा रही है। इसके अलावा पंचायतों के साथ जनसहयोग का भी सहारा लिया जाएगा। श्री सिंह ने बताया कि जिन पंचायतों में हाई स्कूल हैं और वहां पर मैदान हैं उनको चिंहित करने का काम किया जा रहा है। मैदानों के लिए जो एक लाख की राशि मिलेगी उस राशि का उपयोग बाऊंडी बनवाने, गोल पोस्ट लगाने जैसे कामॊ में किया जाएगा। हर गांव को खेल सामान लेने के लिए केन्द्र सरकार हर साल 10 हजार रुपए देगी। इसी तरह से हर ब्लाक को 20 हजार की राशि दी जाएगी। यह राशि पांच साल तक केन्द्र सरकार देगी इसके बाद यह राशि राज्य सरकार को देनी होगी। राज्य चैंपियनशिप के लिए मिलेंगे पांच लाख पाइका में खिलाड़ियों को अपनी प्रतिभाएं दिखाने के लिए गांव के स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर चैंपियनशिप का आयोजन करने की योजना है। इसके तरह गांवों के खिलाड़ियों को सबसे पहले ब्लाक स्तर पर चैंपियनशिप के लिए 50 हजार का अनुदान दिया जाएगा। इसके आगे जिले के आयोजन के लिए तीन लाख रुपए मिलेंगे। राय चैंपियनशिप के लिए पांच लाख की राशि केन्द्र सरकार देगी। इन सभी आयोजनों में पूरी राशि केन्द्र सरकार ही देगी। इन आयोजनों में पुरस्कार की राशि भी दी जाएगी। हर ब्लाक के आयोजन के लिए 45 हजार की राशि बतौर इनाम दी जाएगी। जिले के आयोजन के लिए इनाम की राशि 90 हजार की होगी। पाइका को पंचायतों में अच्छी तरह से लागू करने के लिए हर पंचायत और ब्लाक में एक क्रीड़ा श्री नाम से एक-एक खेल का जानकार नियुक्ति किया जाएगा। पंचायत में इस क्रीड़ा श्री को पांच सौ रुपए और बाल्क में एक हजार का मानदेय मिलेगा। जिन खेलों की चैंपियनशिप करवाई जाएगी उनमें ग्रामीण खेलों को पहले प्राथमिकता दी जाएगी। इन खेलों में एथटलेटिक्स, खो-खो, कबड्डी, तीरंदाजी, रस्साकशी, कुश्ती, फुटबॉल, वालाबॉल, वेटलिफ्टिग और हॉकी शामिल हैं। इन खेलों की जिला स्तर से लेकर राष्ट्रीय चैंपियनशिप का आयोजन होता है।

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