मंगलवार, 24 मार्च 2009
सोमवार, 23 फ़रवरी 2009
कुम्भ की मेजबानी में भी छत्तीसगढ़ नंबर वन
राजिम की नगरी पुराने जमाने से साधु-संतों की नगर रही है। यहां पर लोमष ऋषि का आश्रम है। इसी आश्रम में आकर देश के नागा साधुओं को जो सकुन और चैन मिलता है, वैसा उनको कहीं नहीं मिलता है। सारे साधु-संत एक स्वर में इस बात को स्वीकार करते हैं कि छत्तीसगढ़ सरकार ने जैसा काम राजिम कुम्भ के लिए किया है वैसा देश में किसी और राज्य की सरकार ने नहीं किया है। ऐसे में क्यों न सरकार की तारीफ हो। कुम्भ के बारे में ऐसा कहा जाता है कि जहां पर साधु-संतों का आगमन होता है और धर्म की अमृत वाणी बरसती है, वहीं कुम्भ होता है। ऐसा सब कुछ तो राजिम में होता है, फिर इसको क्यों न कुम्भ कहा जाए। राजिम में जितने भी दिग्गज साधु-संत आए हैं सबने इसको कुम्भ का ही नाम दिया है। इस बार जब राजिम में 9 से 23 फरवरी तक कुम्भ का आयोजन हुआ तो यह आयोजन पहले आयोजनों से बेहतर रहा। सभी साधु-संतों ने इस बात को स्वीकार किया कि भाजपा सरकार इस राजिम कुम्भ का स्वरूप लगातार निखारते जा रही है। जितने भी साधु-संतों के साथ प्रदेश के रहवाली राजिम कुम्भ में आते हैं सभी खुले मन से इसकी तारीफ करते हैं। वैसे यह बात तय है कि छत्तीसगढ़ हमेशा ही हर आयोजन में मेजबान नंबर वन रहा है। अगर हम खेलों की बात करें तो प्रदेश का नाम मेजबानी में नंबर वन पर है। ऐसे में जबकि राजिम कुम्भ की कमान भी उन बृजमोहन अग्रवाल के हाथ में रहती हैं जिनके हाथों में काफी समय तक प्रदेश के खेल मंत्रालय की भी कमान रही है तो इसमें कोई संदेह नहीं कि उनका आयोजन नंबर वन ही रहेगा। यह श्री अग्रवाल के ही बस की बात रही है जो उन्होंने राजिम कुम्भ को आज देश के साथ विदेश में भी एक अलग पहचान देने में सफलता प्राप्त की है। राजिम कुम्भ में आने वाले साधु-संतों को किसी बात की कमी होने नहीं दी जाती है। लगातार उनके लिए रहने के साथ खाने-पीने के साधनों को सुव्यवस्थित करने का काम किया जा रहा है। आज जिस स्थान पर कुम्भ का आयोजन होता है, वहां पर किसी बात की कमी किसी को नहीं रहती है। सबका ऐसा मानना है कि ऐसी व्यवस्था करना तो बस सरकार के बस में ही है। वैसे राजिम लोचन मेले का महत्व शदियों से है, लेकिन इधर पिछले पांच सालों में इसका जो रूप सामने आया है उसकी कल्पना तो किसी ने नहीं की थी कि राजिम का मेला ऐसा भी हो सकता है। मेले में आने-वाले आस-पास के लोग इस बात से हैरान रहते हैं कि यह मेला इतने बड़े रूप में आ गया है। पहले पहल जब मेला लगता था तो आस-पास के गांव के ही लोग आते थे, लेकिन आज राजिम को जब से कुम्भ का रूप दिया गया है शहर के लोग भी राजिम की तरफ खींचे चले जाते हैं। इसका कारण यह है कि जिन साधु-संतों के दर्शन करने के लिए लोगों को देश के बड़े तीर्थ स्थलों में जाना पड़ता है, वे सभी साधु-संत राजिम कुम्भ में आते हैं। ऐसे में भला कोई इनसे आर्शीवाद पाने का मोह त्याग सकता है। राजिम में सुविधाएं देने के म·सद से इस बार लोमष ऋषि के आश्रम के पास एक विश्राम गृह भी बना दिया गया है। कुम्भ के दौरान जहां संत समागम को देखने के लिए जन सैलाब उमड़ता है, वहीं यहां पर राजनीति से परे धर्म का अनूठा संगम भी देखने को मिलता है। संत समागम के साथ छत्तीसगढ़ की संस्कृति से भी दो-चार होने का मौका मिलता है। छत्तीसगढ़ की संस्कृति आज राजिम कुम्भ की बदौलत जन-जन तक जा रही है। जब यहां पर शाही स्नान के लिए सवारी निकलती है तो वास्तव में लगता है कि यह कुम्भ ही है। ऐसा नजारा देखने का मौका कुम्भ में 12 साल में एक बार आता है, लेकिन छत्तीसगढ़ के राजिम कुम्भ में यह नजारा हर साल देखने को मिलता है। बस यहां पर एक ही बात की कमी खलती है कि पानी कम रहता है। सबका ऐसा मानना है कि नदी में पानी की व्यवस्था और कर दी जाए तो राजिम कुम्भ में चार चांद लग सकते हैं।
प्रस्तुतकर्ता राजकुमार ग्वालानी पर 1:43 am 0 टिप्पणियाँ
शनिवार, 21 फ़रवरी 2009
एक दर्जन खेलों में खेलीं 2312 खिलाड़ी
प्रदेश में खेल विभाग द्वारा करवाए जाने वाले आयोजनों में रायपुर जिले पहले नंबर पर चल रहा है। जहां एक तरफ ग्रामीण खेलों में चार हजार से ज्यादा खिलाड़ी खेले हैं, वहीं महिला खेलों में 2312 खिलाड़ियों ने शिरकत करते हुए रिकॉर्ड बनाया है। महिलाओं के लिए एक दर्जन खेलों का आयोजन किया गया जिसमें 15 विकासखंडों की खिलाड़ी खेलीं। राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले महिला खेलों के लिए प्रदेश की टीमें बनाने से पहले जिला स्तर पर खेल एवं युवा कल्याण विभाग द्वारा आयोजन किए जाते हैं। इन आयोजनों में प्रदेश के 18 जिलों में रायपुर जिला पहले नंबर पर चल रहा है। रायपुर जिले से सभी 15 विकासखंडों के खिलाड़ी खेलने आते हैं। महिला खेलों में एक दर्जन खेलों एथलेटिक्स, कबड्डी, वालीबॉल, बास्केटबॉल, हैंडबॉल, हॉकी, टेबल टेनिस, बैडमिंटन, तैराकी, जिम्नास्टिक, खो-खो एवं लॉन टेनिस का आयोजन किया गया। इन आयोजनों में 2312 खिलाड़ियों ने भाग लिया। जिन 15 विकासखंडों ने इन खेलों में भाग लिया उनमें धरसीवां ऐसा विकासखंड रहा है जहां से एक जिम्नास्टिक को छोड़कर बाकी सभी खेलों में महिला खिलाड़ी खेलने आई हैं। धरसीवां विकासखंड से सबसे ज्यादा 466 खिलाड़ी शामिल हुईं हैं। वैसे जिम्नास्टिक की खिलाड़ी किसी भी विकासखंड में नहीं हैं। ज्यादातर विकासखंडों में एथलेटिक्स, कबड्डी, वालीबॉल और खो-खो की ही खिलाड़ी ज्यादा हैं। इन्हीं खेलों में मुकाबला कड़ा होता है। बाकी खेलों में काफी कमी टीमें आती हैं। बहरहाल जिन विकासखंडों से खिलाड़ी खेलने आईं उनमें अभनपुर से 194, आरंग से 142, तिल्दा से 134, बलौदाबाजार से 107, पलारी से 138, कसडोल से 137, बिलाईगढ़ से 139, सिमगा से 99, भाटापारा से 117, राजिम से 115, गरियाबांद से 211, देवभोग से 101, छुरा से 124 और मैनपुर से 88 खिलाड़ी शामिल हैं। राष्ट्रीय स्तर पर भी महिला खेलों में ज्यादा सफलता एक तरफ जहां रायपुर जिला महिला खिलाड़ियों के मामले में पहले नंबर पर है, वहीं राष्ट्रीय स्तर पर सफलता के मामले में भी महिलाएं आगे हैं। खेल विभाग द्वारा जिन टीमों को राष्ट्रीय स्तर पर खेलने के लिए भेजा जाता है उनमें ग्रामीण के साथ महिला टीमें शामिल हैं। इनमें महिला टीमें ही लगातार पदक ला रही है। हाल ही में भुवनेश्वर में हुई राष्ट्रीय चैंपियनशिप में छत्तीसगढ़ की बास्केटबॉल और हैंडबॉल टीमों ने स्वर्ण पदक जीता है। इन खेलों के अलावा वालीबॉल, कबड्डी, खो-खो एथटेक्सि और टेबल टेनिस में भी प्रदेश की टीमें काफी सफल रही हैं।
प्रस्तुतकर्ता राजकुमार ग्वालानी पर 10:57 am 0 टिप्पणियाँ
प्रदेश ओलंपिक संघ की अब तीन प्रशिक्षण शिविर लगाने की योजना
राष्ट्रीय खेलों के लिए प्रदेश ओलंपिक संघ अब तीन प्रशिक्षण शिविर लगाने की योजना पर काम कर रहा है। फरवरी में होने वाले इस आयोजन के स्थगित होने के बाद अब प्रदेश की टीमों को तैयार करने के लिए ज्यादा वक्त मिल गया है।
यह जानकारी देते हुए प्रदेश ओलंपिक संघ के महासचिव बशीर अहमद खान ने बताया कि रांची में 15 फरवरी से होने वाले राष्ट्रीय खेलों के स्थगित होने से पहले ही ओलंपिक संघ को प्रदेश के खेल विभाग से टीमों को तैयार करने के लिए अनुदान मिल चुका है। ऐसे में अब संघ ने पहले यह फैसला किया था पूर्व में निर्धारित 22 जनवरी से प्रारंभ होने वाले प्रशिक्षण शिविर को यथावत रखा जाएगा, लेकिन स्कूली और कॉलेज के खिलाड़ियों की परीक्षाओं को देखते हुए अब संघ ने फैसला किया है कि पहला शिविर मार्च में लगाया जाए ताकि कम से कम स्कूली खिलाड़ियों की परीक्षाएं समाप्त हो जाए। इसके बाद दूसरा शिविर मई और तीसरा शिविर टीमों के जाने के पहले जून में लगाया जाए। उन्होंने बताया कि संघ द्वारा जो तीन शिविर लगाने की योजना पर काम किया जा रहा है उसकी जानकारी भी खेल विभाग को दे दी जाएगी। उन्होंने कहा कि पहली बार ऐसा होगा कि टीमों के लिए तीन शिविर लगाने का मौका मिलेगा। ऐसा होने से खिलाड़ियों को ज्यादा अभ्यास का मौका मिलेगा और प्रदेश की टीमें ज्यादा से ज्यादा पदक लाने में सफल होंगी। उन्होंने बताया कि खेल संचालक जीपी सिंह पहले ही यह कह चुके हैं कि जिन खेलों में एनआईएस कोच की जरूरत होगी, उन खेलों के लिए बाहर से भी कोच बुलाए जाएंगे।
प्रस्तुतकर्ता राजकुमार ग्वालानी पर 10:55 am 0 टिप्पणियाँ
क्रिकेट का ही जलवा
राजधानी के नेताजी स्टेडियम में एक तरफ जहां स्वर्ण कप नेहरू हॉकी की तैयारियां चल रहीं हैं, वहीं दूसरी तरफ मैदान के एक किनारे छोटे-छोटे बच्चो क्रिकेट खेलने में मस्त हैं। यह सिर्फ एक स्टेडियम का हाल नहीं है। आज जहां देखो बस क्रिकेट का ही जलवा नजर आता है। घर के ड्राइंगरूम से लेकर मैदान तक बस क्रिकेट और क्रिकेट के अलावा कुछ नहीं है। क्रिकेट को तो अब भारत में अघोषित तौर पर राष्ट्रीय खेल भी मान लिया गया है। भारत की क्रिकेट टीम इस समय श्रीलंका के दौरे पर है और धोनी की सेना वहां धमाल कर रही है। इधर धोनी की सेना धमाल कर रही है तो इधर अपने छत्तीसगढ़ में भी हर तरफ हर कोई क्रिकेट का जानने वाला या फिर न भी जानने वाला क्रिकेट में कमाल कर रहा है। राजधानी का ऐसा कोई मैदान नहीं है जहां पर रोज सुबह बड़ी संख्या में बच्चो और बड़े बल्ला लिए गेंदों पर चौके-छक्के लगाते नजर नहीं आते हैं। अपने हॉकी के एक मात्र नेताजी स्टेडियम की बात करें तो यहां पर इन दिनों अखिल भारतीय स्वर्ण कर नेहरू हॉकी की तैयारी चल रही है। एक तरफ आयोजक मैदान बनाने में जुटे हैं तो दूसरी तरफ एक किनारे में कई बच्चो टेनिस बॉल से क्रिकेट खेलने में मस्त है। इन बच्चों को इस बात का दुख है कि जब हॉकी मैचों का प्रारंभ होगा तो उनको क्रिकेट खेलने का मौका नहीं मिलेगा। वैसे हॉकी के इस स्टेडियम में हॉकी कम क्रिकेट का खेल ज्यादा होता है। कुछ दिनों पहले ही नगर निगम की टीमें भी यहां पर क्रिकेट खेल रहीं थीं। सड़क पर क्रिकेट आम राजधानी में जब भी किसी कारण से हड़ताल होती है और दुकानों में ताले लगते हैं तो आस-पास रहने वाले बच्चों की चांदी हो जाती है। बच्चों को सड़क पर क्रिकेट खेलने का मौका मिल जाता है। वैसे शहर का कोई भी ऐसा वार्ड और कालोनी नहीं है जहां पर बच्चो सड़कों पर क्रिकेट खेलते नजर नहीं आते हैं। कुछ समय पहले जब पेट्रोल की मारा-मारी हुई थी और कई पेट्रोल पंपों में ताले लग गए थे तो पेट्रोल पंपों के कर्मचारी समय काटने के लिए क्रिकेट खेलते ही नजर आए थे। खेतों-पहाड़ों में भी क्रिकेट क्रिकेट की दीवानगी महज शहरों तक सीमित है ऐसा नहीं है। इसकी दीवानगी शहरों से ज्यादा तो गांवों में नजर आती है। गांवों में कोई बच्चा देशी खेल कबड्डी, वालीबॉल, फुटबॉल, कुश्ती खेलते भले नजर न आए पर क्रिकेट खेलते जरूर नजर आएगा। गांवॊ में मैदान न होने के कारण गांवों में खेतॊं को ही मैदान बना दिया जाता है और बड़े मजे से मस्त होकर बच्चो चौके-छक्के लगाते नजर आते हैं। गांवों के खेतों के बाद पहाड़ों की तरफ रूख करें तो जहां इन पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले बच्चो क्रिकेट खेलते हैं, वहीं पहाड़ी क्षेत्रों के धार्मिक स्थलों डोंगरगढ़, भौरमदेव, खल्लारी, रतनपुर, जतमई या फिर कोई भी धार्मिक स्थल हो यहां जब परिवार वाले पिकनिक मानने जाते हैं साथ में बल्ला और गेंद जरूर ले जाते हैं और पहाड़ी में ही शुरू हो जाते हैं क्रिकेट का मजा लेने। ऐसा ही उद्यानों में भी होता है। कुल मिलाकर ऐसा कोई स्थान नजर नहीं आता है जहां पर क्रिकेट की घुसपैठ न हो। क्रिकेट स्टेडियम भी पहले बना राजधानी रायपुर में एक तरफ जहां स्पोट्र्स कॉम्पलेक्स दो दशक के बाद भी अब तक नहीं बन सका है, वहीं दूसरी तरफ प्रदेश की नई राजधानी में अंतरराष्ट्रीय स्तर का क्रिकेट स्टेडियम बन गया है। न सिर्फ यह स्टेडियम बन गया है, बल्कि यहां पर भारतीय टीम के पूर्व खिलाड़ियॊ का एक मैच भी करवाया गया। जब मैच हुआ तो इस मैच को देखने के लिए जिस तरह से एक लाख से ज्यादा दर्शकों का सैलाब आया उससे भी यह मालूम होता है कि छत्तीसगढ़ में क्रिकेट की कितनी दीवानगी है। मैच में खेलने आए खिलाड़ी एक मैत्री मैच ही इतने ज्यादा दर्शक देखकर आश्चर्य में पड़ गए थे। विकास का रास्ता भी दिखाते है क्रिकेट क्रिकेट के बारे में विशेषज्ञों का ऐसा मानना है कि यह जिस राज्य में ज्यादा खेला जाता है, उसको विकास का रास्ता भी दिखाता है। एक समय भारतीय टीम में मुंबई के खिलाड़ियों का दबदबा तो मुंबई का विकास हुआ। इसके बाद दिल्ली का नंबर आया, फिर बंगाल का और फिर अब उत्तर प्रदेश और झारखंड का नंबर है। इन राज्यों में विकास की गंगा बह रही है। छत्तीसगढ़ से भले एक राजेश चौहान के बाद कोई खिलाड़ी भारतीय टीम में स्थान नहीं बना सका है, लेकिन यहां पर क्रिकेट की दीवानगी किसी भी राज्य की तुलना में काफी ज्यादा है। और यह दीवानगी भी राज्य को विकास का रास्ता दिखाने का काम कर सकती है।
प्रस्तुतकर्ता राजकुमार ग्वालानी पर 10:50 am 0 टिप्पणियाँ