सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

कुम्भ की मेजबानी में भी छत्तीसगढ़ नंबर वन


छत्तीसगढ़ का नाम आज राजिम कुम्भ की मेजबानी में नंबर वन पर आ गया है। छत्तीसगढ़ देश का ऐसा एक मात्र राज्य है जहां पर हर साल कुम्भ का आयोजन होता है। अब यह बात अलग है कि राजिम कुम्भ को कुम्भ कहने से कुछ लोगों को आपत्ति होती है, लेकिन देश के महान साधु-संतों ने जरूर इसको देश के पांचवें कुम्भ का नाम दे दिया है। वैसे राजिम को कुम्भ कहने से किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। अगर देश में एक और कुम्भ प्रारंभ हुआ है और वह भी एक ऐसा कुम्भ जहां पर हर साल देश भर के साधु-संतों का जमावड़ा लगता है तो इसमें बुरा क्या है। वैसे राजिम को कुम्भ का दर्जा दिलाने में सबसे बड़ा हाथ प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी की सरकार और उसके मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ पयर्टन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का है। आज देश का ऐसा कोई साधु-संत नहीं होगा जो इन दोनों को नहीं जानता होगा।
राजिम की नगरी पुराने जमाने से साधु-संतों की नगर रही है। यहां पर लोमष ऋषि का आश्रम है। इसी आश्रम में आकर देश के नागा साधुओं को जो सकुन और चैन मिलता है, वैसा उनको कहीं नहीं मिलता है। सारे साधु-संत एक स्वर में इस बात को स्वीकार करते हैं कि छत्तीसगढ़ सरकार ने जैसा काम राजिम कुम्भ के लिए किया है वैसा देश में किसी और राज्य की सरकार ने नहीं किया है। ऐसे में क्यों न सरकार की तारीफ हो। कुम्भ के बारे में ऐसा कहा जाता है कि जहां पर साधु-संतों का आगमन होता है और धर्म की अमृत वाणी बरसती है, वहीं कुम्भ होता है। ऐसा सब कुछ तो राजिम में होता है, फिर इसको क्यों न कुम्भ कहा जाए। राजिम में जितने भी दिग्गज साधु-संत आए हैं सबने इसको कुम्भ का ही नाम दिया है। इस बार जब राजिम में 9 से 23 फरवरी तक कुम्भ का आयोजन हुआ तो यह आयोजन पहले आयोजनों से बेहतर रहा। सभी साधु-संतों ने इस बात को स्वीकार किया कि भाजपा सरकार इस राजिम कुम्भ का स्वरूप लगातार निखारते जा रही है। जितने भी साधु-संतों के साथ प्रदेश के रहवाली राजिम कुम्भ में आते हैं सभी खुले मन से इसकी तारीफ करते हैं। वैसे यह बात तय है कि छत्तीसगढ़ हमेशा ही हर आयोजन में मेजबान नंबर वन रहा है। अगर हम खेलों की बात करें तो प्रदेश का नाम मेजबानी में नंबर वन पर है। ऐसे में जबकि राजिम कुम्भ की कमान भी उन बृजमोहन अग्रवाल के हाथ में रहती हैं जिनके हाथों में काफी समय तक प्रदेश के खेल मंत्रालय की भी कमान रही है तो इसमें कोई संदेह नहीं कि उनका आयोजन नंबर वन ही रहेगा। यह श्री अग्रवाल के ही बस की बात रही है जो उन्होंने राजिम कुम्भ को आज देश के साथ विदेश में भी एक अलग पहचान देने में सफलता प्राप्त की है। राजिम कुम्भ में आने वाले साधु-संतों को किसी बात की कमी होने नहीं दी जाती है। लगातार उनके लिए रहने के साथ खाने-पीने के साधनों को सुव्यवस्थित करने का काम किया जा रहा है। आज जिस स्थान पर कुम्भ का आयोजन होता है, वहां पर किसी बात की कमी किसी को नहीं रहती है। सबका ऐसा मानना है कि ऐसी व्यवस्था करना तो बस सरकार के बस में ही है। वैसे राजिम लोचन मेले का महत्व शदियों से है, लेकिन इधर पिछले पांच सालों में इसका जो रूप सामने आया है उसकी कल्पना तो किसी ने नहीं की थी कि राजिम का मेला ऐसा भी हो सकता है। मेले में आने-वाले आस-पास के लोग इस बात से हैरान रहते हैं कि यह मेला इतने बड़े रूप में आ गया है। पहले पहल जब मेला लगता था तो आस-पास के गांव के ही लोग आते थे, लेकिन आज राजिम को जब से कुम्भ का रूप दिया गया है शहर के लोग भी राजिम की तरफ खींचे चले जाते हैं। इसका कारण यह है कि जिन साधु-संतों के दर्शन करने के लिए लोगों को देश के बड़े तीर्थ स्थलों में जाना पड़ता है, वे सभी साधु-संत राजिम कुम्भ में आते हैं। ऐसे में भला कोई इनसे आर्शीवाद पाने का मोह त्याग सकता है। राजिम में सुविधाएं देने के म·सद से इस बार लोमष ऋषि के आश्रम के पास एक विश्राम गृह भी बना दिया गया है। कुम्भ के दौरान जहां संत समागम को देखने के लिए जन सैलाब उमड़ता है, वहीं यहां पर राजनीति से परे धर्म का अनूठा संगम भी देखने को मिलता है। संत समागम के साथ छत्तीसगढ़ की संस्कृति से भी दो-चार होने का मौका मिलता है। छत्तीसगढ़ की संस्कृति आज राजिम कुम्भ की बदौलत जन-जन तक जा रही है। जब यहां पर शाही स्नान के लिए सवारी निकलती है तो वास्तव में लगता है कि यह कुम्भ ही है। ऐसा नजारा देखने का मौका कुम्भ में 12 साल में एक बार आता है, लेकिन छत्तीसगढ़ के राजिम कुम्भ में यह नजारा हर साल देखने को मिलता है। बस यहां पर एक ही बात की कमी खलती है कि पानी कम रहता है। सबका ऐसा मानना है कि नदी में पानी की व्यवस्था और कर दी जाए तो राजिम कुम्भ में चार चांद लग सकते हैं।

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